राएगाँ सब कुछ हुआ कैसी बसीरत क्या हुनर गर्द गर्द अपनी बसीरत ख़ाक ख़ाक अपना हुनर जिस तरफ़ देखो हुजूम-ए-चेहरा-ए-बे-चेरगाँ किस घने जंगल में यारो गुम हुआ सब का हुनर अब हमारी मुट्ठियों में एक जुगनू भी नहीं छीन कर बे-रहम मौसम ले गया सारा हुनर तोड़ कर इस को भी अब कोई हवा ले जाएगी ये जो बर्ग-ए-सब्ज़ के मानिंद है मेरा हुनर अब कहाँ दिल के लहू में भीगी भीगी आगही जेब में हम भी लिए फिरते हैं माँगे का हुनर देखना हैं खेलने वालों की चाबुक-दस्तियाँ ताश का पत्ता सही मेरा हुनर तेरा हुनर गर्मी-ए-पहलू यही तश्कीक ओ ला-इल्मी की आँच ज़ौक़-ए-गुमशुदगी से हम हैं बा-ख़बर या बा-हुनर बस यही ख़ाकिस्तर-ए-जाँ है यहाँ अपनी शनाख़्त हो गया सारा बदन जब राख तो चमका हुनर शख़्सियत का ये तवाज़ुन तेरा हिस्सा है 'फ़ज़ा' जितनी सादा है तबीअ'त उतना ही तीखा हुनर