वा'दे मोहब्बतों के कुछ ऐसे निभाए हैं हम क़त्ल होने कूचा-ए-क़ातिल में आए हैं ख़ुशबू तिरे विसाल की फैली है चार सू किन किन जगहों पे तू ने ठिकाने बनाए हैं आँसू लहू में डूब गए तो ख़बर हुई तूफ़ान दिल ने दर्द के क्या क्या उठाए हैं तेरी मोहब्बतों के नशे भी अजीब हैं हम होश में थे फिर भी क़दम लड़खड़ाए हैं पक्के मकाँ की वहशतों को देख देख कर अब हम ने ख़्वाहिशों के घरौंदे बनाए हैं ये ज़िंदगी किसी की अमानत है दोस्तो गिन के बताओ जितने भी लम्हे गँवाए हैं शाम-ए-ग़रीबाँ तुम ने तो देखी नहीं कभी बस इस ख़याल से ही तुम्हें दुख सुनाए हैं