रेज़ा रेज़ा जैसे कोई टूट गया है मेरे अंदर कौन है 'सय्यद' कर्ब जो इतने झेल रहा है मेरे अंदर उजड़ी उजड़ी ख़्वाब की बस्ती सहरा सहरा आँखें मेरी जाने ये तूफ़ान कहाँ से आज उठा है मेरे अंदर ख़ामोशी से झेल रही है गर्मी सर्दी हर मौसम की मजबूरी की चादर ओढ़े एक अना है मेरे अंदर आज न जाने क्यूँ लगता है दिल का मौसम निखरा निखरा फ़स्ल-ए-जुनूँ का मेहमाँ बन कर कौन रुका है मेरे अंदर ज़ुल्फ़ के साए ख़्वाब की मंज़िल रास उसे क्या आएगी अब सहरा सहरा ख़ाक जो कब से छान रहा है मेरे अंदर आज भी जाने क्यूँ लगता है इतना ही अंजान सा कुछ वो जिस ने सारे दुख-सुख बाँटे साथ रहा है मेरे अंदर कब से खड़ा मैं सोच रहा हूँ ईमाँ के दोराहे पर ये एक तो वो जो सब का ख़ुदा है एक ख़ुदा है मेरे अंदर