रेज़ा रेज़ा ही था मिस्मार पुराना घर था अपने होने से ही बेज़ार पुराना घर था सिलवटें जिस्म की जैसी ही थीं दीवारों पर और नज़रों में मगर प्यार पुराना घर था तज्रबा उम्र में पिन्हाँ था लियाक़त जैसे जैसे रौशन कोई मीनार पुराना घर था उखड़ा उखड़ा सा था लहजा तो टपकती छत थी पर था साया भी फ़गन-दार पुराना घर था बिखरा बिखरा था मोहब्बत में मगर यकजा था था हमारा भी तो ग़म-ख़्वार पुराना घर था कोना कोना था हमारे लिए पैरो-कारी और ख़ुद के लिए नादार पुराना घर था ख़ुद के ईमान की भी फ़िक्र दुआ भी सब को फूल ही फूल थे गुलज़ार पुराना घर था 'शाह' जब से वो गया दर्द का दरमाँ दे कर फूल लगते हैं मुझे ख़ार पुराना घर था