रिफ़ाक़तों का तलबगार भी न होता था मगर किसी से वो बे-ज़ार भी न होता था कल उस के ख़्वाब थे जो आज अपनी दुनिया है फ़साना-साज़ फ़ुसूँ-कार भी न होता था सुबुक-रवी की वहीं शर्त भी ठहरती थी जहाँ से रास्ता हमवार भी न होता था मिरे सिरहाने उठाती थीं हश्र ताबीरें अभी मैं ख़्वाब से बेदार भी न होता था हवाओं से था गुरेज़ाँ वो ख़ुद-गिरफ़्ता परिंद किसी के हाथों गिरफ़्तार भी न होता था निहाँ हों आँख से बारिश में दौड़ते शोले समाँ कुछ इतना धुआँ-धार भी न होता था गुज़र दिलों से हो सब इस हवा में थे लेकिन कोई किसी का तरफ़-दार भी न होता था मिरा सुकूत न हो कुफ़्ल-ए-बाब-ए-मअनी 'यास' बयाँ हुरूफ़ की दीवार भी न होता था