रिहा करना नहीं उन को उन्हें आबाद रखना है सुनहरी ख़्वाहिशों को क़ैद में दिल-शाद रखना है वो दिन भी याद रखना है अभी जो कल ही बीता है जो अब माज़ी का हिस्सा है हमेशा याद रखना है ख़ुदा ख़ुद बस्तियों के फ़ैसले करता है हिकमत से किसे आबाद रखना है किसे बर्बाद रखना है बहुत से लोग आएँगे तुम्हारी ज़िंदगानी में मगर हर-दम किसी के ख़ाल-ओ-ख़द को याद रखना है कोई मौसम हो कोई इम्तिहान-ए-रंज-ओ-राहत हो हमें तो 'शाहिदा' हर हाल में दिल-शाद रखना है