रिश्ता नहीं है अब कोई दार-ए-फ़ना के साथ ता-हश्र अपनी ख़ाक उड़ेगी हवा के साथ थूका था ख़ून जिस के लिए राह-ए-इश्क़ में उभरा हूँ उस के हाथ पे रंग-ए-हिना के साथ ऐ छोड़ जाने वाले ज़रा पीछे मुड़ के देख हर साँस उड़ रही है तिरी गर्द-ए-पा के साथ लाई थी जो उड़ा के हवा बू-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार ले जा रही है होश-ओ-ख़िरद अब उड़ा के साथ तू ही बता दे कैसे ज़ियारत तिरी करूँ चस्पाँ है मेरी चश्म तिरे नक़्श-ए-पा के साथ लाती है मुझ को खींच के चौखट पे बार बार कैसी कशिश है नस्ब तिरी हर सदा के साथ 'शहबाज़' मेरे अश्क के कैसे बुझेंगे दीप लौ ग़म की मिल गई है मुख़ालिफ़ हवा के साथ