रिश्ता-ए-दम से जान है तन में मनके मनके से तेरे सिमरन में दीदा-ए-दिल से देखता हूँ तुझे सोचता हूँ जब अपने मैं मन में गुल है शबनम से आह दीदा-ए-तर बिन वो गुल-रू के सुब्ह-ए-गुलशन में कर्बला के बगूले सारे काश ख़ाक उड़ाता हुआ फिरूँ बन में गौहर-ए-आब-दार के मानिंद अश्क ग़लताँ हैं मेरे दामन में सर्व-ए-गुलज़ार सा सुहाता है वो मिरा यार घर के आँगन में अपनी सूरत को ऐ शहनशह-ए-हुस्न 'इश्क़' के देख दिल के दर्पन में