रिश्तों में भी आई सियासत कैसी बे-ईमानी है हैं सारे अल्फ़ाज़ शगुफ़्ता लहजे में वीरानी है हो गया मुश्किल कैसे छुपाऊँ सर से ले कर पाँव तलक अपनी चादर फट सकती है ऐसी खींचा-तानी है उस को पाने की कोशिश में जान तिरी हलकान है क्यूँ दुनिया अंदर से पीतल ऊपर सोने का पानी है इस हम्माम में सब नंगे हैं किस पे उठाए उँगली कौन अपनी अपनी चौखट है अपनी अपनी पेशानी है मैं अपने कमरे में बैठा तन्हा तन्हा जलता हूँ छत पर छम-छम नाच रही है कैसी बरखा रानी है आते जाते लम्हे उस को देख रहे हैं हैरत से तख़्त बनाया है सोने का दो दिन की सुल्तानी है हम ने किया 'मक़्सूद' ख़सारे का ये सौदा जीवन भर अपने बारे में नहीं सोचा बात सभों की मानी है