ले गया घर से उन्हें ग़ैर के घर का ता'वीज़ हम ने देखा न सुना ऐसे असर का ता'वीज़ दे के बू ज़ुल्फ़ की रख लो तह-महरम दिल को ख़्वाब में फिर न डरोगे ये है डर का ता'वीज़ सदक़े तेरे मुझे तस्कीन से तस्कीन हुई ख़त तिरा था कि मिरे दर्द-ए-जिगर का ता'वीज़ हो मुबारक तुझे आँखों में समाना दिन-रात जे़ब-ए-बाज़ू रहे हर-वक़्त नज़र का ता'वीज़ रह गया ग़ैर के घर जाइए भी लाइए भी आप के सर की क़सम आप के सर का ता'वीज़ बाँध ले बहर-ए-ख़ुदा अपने भरे बाज़ू पर नज़र-ए-बद से बचाएगा नज़र का ता'वीज़ घर गए अपने बता कर वो हमें राह-ए-अदम वस्ल की शब की निशानी है कमर का ता'वीज़ हाथ भी आएँ तो है हाथ लगाना मुश्किल सर-ए-बाज़ू है बँधा ख़ास असर का ता'वीज़ डर से उन के भरे बाज़ू कई काग़ज़ उतरे हाथ थामा था शब-ए-वस्ल कि सरका ता'वीज़ दिल है अब माँग के आग़ोश में दिन-रात 'रियाज़' ये तो सर चढ़ के बना यार के सर का ता'वीज़