रोज़-ए-फ़िराक़ हर तरफ़ इक इंतिशार था मैं बे-क़रार था तो जहाँ बे-क़रार था नक़्श-ए-तिलिस्म मेरा दिल-ए-दाग़-दार था था दिन को फूल रात को शम-ए-मज़ार था यादश-ब-ख़ैर याद हैं दिल की मुसीबतें पहलू में इक सितम-ज़दा-ए-रोज़गार था अल्लाह रे शाम-ए-ग़म मिरे दिल की शिकस्तगी तारों का टूटना भी मुझे नागवार था वहशत-तराज़ थी कशिश-ए-शाम-ए-बे-कसी मरक़द से अपने दूर चराग़-ए-मज़ार था क्या देते हम किसी को दुआ-ए-सलामती अपनी ही ज़िंदगी का किसे ए'तिबार था 'सीमाब' नाला कर के पशेमानियाँ फ़ुज़ूल वो काम क्यूँ किया जो उन्हें नागवार था