रोते हैं जब भी हम दिसम्बर में जम से जाते हैं ग़म दिसम्बर में जो हमें भूल ही गया था उसे याद आए हैं हम दिसम्बर में सारे शिकवे-गिले भुला के अब लौट आ ऐ सनम दिसम्बर में किस का ग़म खाए जा रहा है तुम्हें आँख क्यूँ है ये नम दिसम्बर में याद आता है वो बिछड़ना जब ख़ूब रोए थे हम दिसम्बर में वही पल है वही है शाम-ए-हज़ीं आज फिर बिछड़े हम दिसम्बर में बस यही इक तमन्ना है 'इंदर' काश मिल जाएँ हम दिसम्बर में