रू-ए-ज़ेबा को दिखाते हैं चले जाते हैं क्यूँ नज़र मुझ से मिलाते हैं चले जाते हैं हसरत-ए-दिल मिरी रह जाती है दिल ही में मिरे फ़र्ज़ क्या ऐसे निभाते हैं चले जाते हैं आप से ऐसी तवक़्क़ो न कभी थी मुझ को शम-ए-उम्मीद बुझाते हैं चले जाते हैं कुछ तो आदाब-ए-मोहब्बत का करें पास-अो-लिहाज़ क्या यूँही दिल को लगाते हैं चले जाते हैं चारागर हैं तो करें आ के मिरी चारागरी दर्द-ए-दिल और बढ़ाते हैं चले जाते हैं हार ही हार हो जैसे मिरी क़िस्मत में लिखी जीत का जश्न मनाते हैं चले जाते हैं तुर्श-रूई कभी होती नहीं इतनी अच्छी आते ही रंग जमाते हैं चले जाते हैं यूँही घुट घुट के मरूँ हिज्र में कब तक उन के मौत वो मेरी बुलाते हैं चले जाते हैं दे के दरवाज़ा-ए-दिल पर मिरे अक्सर दस्तक नींद रातों की उड़ाते हैं चले जाते हैं आप का क्या है जलेंगे तो जलेंगे हम लोग आप तो आग लगाते हैं चले जाते हैं रौशनी आप का दरकार है शायद उस से ख़ाना-ए-दिल को जलाते हैं चले जाते हैं आप को दिल है मिलाना तो मिलाएँ ब-खु़शी दूर से हाथ मिलाते हैं चले जाते हैं इस से बेहतर था कि आते न अभी मेरे पास आप कुछ देर को आते हैं चले जाते हैं आप से दिल को लगाना है सज़ा मेरे लिए ख़ून-ए-दिल मेरा जलाते हैं चले जाते हैं कीजिए कुछ तो मोहब्बत का मिरी पास-अो-लिहाज़ क्या इसी तरह से आते हैं चले जाते हैं आप का फ़र्ज़ है अपनी कहीं मेरी भी सुनें हाल-ए-दिल अपना सुनाते हैं चले जाते हैं आप से किस ने कहा था कि अभी आ जाएँ आ के 'बर्क़ी' को सताते हैं चले जाते हैं