रूह के जाने की क़ालिब से कोई मुद्दत नहीं

रूह के जाने की क़ालिब से कोई मुद्दत नहीं
सब्र कर ऐ दिल तुझे क्या सब्र की ताक़त नहीं

क्या मिरी बेताबी-ए-दिल बाइस-ए-वहशत नहीं
ये ख़लिश पहलू की मेरे मोनिस-ए-ग़ुर्बत नहीं

दिल नहीं है वो नहीं है इश्क़ का जिस में गुज़र
वो भी कोई आँख है जिस आँख में हसरत नहीं

कोई ख़्वाहाँ सीम-ओ-ज़र का कोई तालिब तख़्त का
मेरे आगे फ़क़्र से बेहतर कोई दौलत नहीं

आओ बैठो शौक़ से ख़ुद को छुपा कर दिल में तुम
इस से बेहतर दो-जहाँ में गोशा-ए-उज़्लत नहीं

ख़ुल्क़ हिम्मत और मुरव्वत हैं शरफ़ इंसान के
वो कभी इंसाँ नहीं है जिस में ये हालत नहीं

ख़ून-ए-दिल पीता है और खाता है वो लख़्त-ए-जिगर
आब-ओ-दाना की तिरे बीमार को हाजत नहीं

ले के दिल मेरा दम-ए-रुख़्सत वो ये कहने लगे
ख़िलअ'त-ए-तहसीं से बेहतर कोई भी ख़िलअ'त नहीं

ऐ 'जमीला' सूरत-ए-तस्वीर मैं ख़ामोश हूँ
ज़ोफ़ हद से बढ़ गया नालों की अब क़ुदरत नहीं


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