रूह को राहत हुई ग़म दूर सारा हो गया कौन मेरे दिल में या-रब जल्वा-आरा हो गया जब जुदा मुझ से वो मेरा माह-पारा हो गया रौशनी जाती रही अंधेर सारा हो गया रस्म-ओ-रह ऐसी बढ़ाओ जिस से सब आगाह हों तुम हमारे हो गए और मैं तुम्हारा हो गया मैं जो कहता था कि मुझ से ज़ब्त हो सकता नहीं राज़ फ़ाश आख़िर तुम्हारा और हमारा हो गया तीर-ए-मिज़्गाँ उस ने जब सीधा किया मेरी तरफ़ दिल मुशब्बक हो गया सीना दो-पारा हो गया क्या लगे दिल क़ुमरी-ओ-शमशाद-ओ-गुल का बाग़ में उन को तेरी क़ामत-ओ-रुख़ का नज़ारा हो गया