रूह को राह-ए-अदम में मिरा तन याद आया दश्त-ए-ग़ुर्बत में मुसाफ़िर को वतन याद आया चुटकियाँ दिल में मिरे लेने लगा नाख़ुन-ए-इश्क़ गुल-बदन देख के उस गुल का बदन याद आया वहम ही वहम में अपनी हुई औक़ात बसर कमर-ए-यार को भूले तो दहन याद आया बर्ग-ए-गुल देख के आँखों में तिरे फिर गए लब ग़ुंचा चटका तो मुझे लुत्फ़-ए-सुख़न याद आया दर-ब-दर फिर के दिला घर की हमें क़द्र हुई राह-ए-ग़ुर्बत में जो भूले तो वतन याद आया आह क्यूँ खेंच के आँखों में भर आए आँसू क्या क़फ़स में तुझे ऐ मुर्ग़-ए-चमन याद आया फिर 'अमानत' मिरा दिल भूल गया ऐश ओ तरब फिर मुझे रौज़ा-ए-सुल्तान-ए-ज़मन याद आया