रुजूअ बंदा की है इस तरह ख़ुदा की तरफ़ फिरे ज़मीर-ए-ख़बर जैसे मुब्तदा की तरफ़ बईद क्या है मुरव्वत से तेरी ऐ शह-ए-हुस्न निगाह-ए-लुत्फ़ से देखे जो तू गदा की तरफ़ कहाँ वो ज़ुल्फ़ कहाँ ख़ून-ए-नाफ़ा-ए-आहू जो मुश्क समझे हैं वो लोग हैं ख़ता की तरफ़ उलझ के शाने से खाता है सैकड़ों झटके क़ुसूर से ये तिरे गेसू-ए-रसा की तरफ़ ख़ुदा ने दर्द-ए-मोहब्बत अता किया है जिसे उसे तवज्जोह-ए-ख़ातिर नहीं दवा की तरफ़ मला जो तुम ने लहू दस्त-ओ-पा में आशिक़ का न होगा मेल तबीअत को फिर हिना की तरफ़ करेगा यार मिरी जंग-ए-ग़ैर में इमदाद जो आश्ना हैं वो होते हैं आश्ना की तरफ़ फ़िराक़-ए-यार में रहता है यूँ तसव्वुर-ए-गोर ख़याल जैसे मुसाफ़िर का हो सरा की तरफ़ न होगा हम-सफ़र-ए-रूह पैकर-ए-ख़ाकी ये सू-ए-अर्ज़-ए-रवाँ होगा वो समा की तरफ़ बहुत ख़राब रहा बुत-कदे में ऐ 'आतिश' ख़ुदा-परस्त है चल ख़ाना-ए-ख़ुदा की तरफ़