रुक जाऊँ भला कैसे तिरी राहगुज़र में मैं बाद-ए-सबा हूँ मुझे रहना है सफ़र में हर पल मुझे इक ख़ौफ़ का एहसास हुआ है आसेब कोई रहता है शायद मिरे घर में उस पैकर-ए-ख़ुशबू की मैं तस्वीर बनाऊँ इतना तो कमाल आए मिरे दस्त-ए-हुनर में दस्तार-ए-फ़ज़ीलत के मैं क़ाबिल तो नहीं था क्या तुझ को नज़र आया था इस ख़ाक-बसर में मुमकिन है कड़ी धूप भी साए में बदल जाए शामिल है तिरी याद मिरे रख़्त-ए-सफ़र में