तर्क-ए-तअल्लुक़ात का वा'दा नहीं किया वा'दा अगर किया उसे पूरा नहीं किया इक काम था ज़रूरी ज़रूरी था एक काम दिल मुतमइन नहीं था लिहाज़ा नहीं किया जैसी मिली है वैसी गुज़ारी है ज़िंदगी हम ने कहीं भी झूटा दिखावा नहीं किया ख़ुद को कई मक़ाम पे ख़म तो किया ज़रूर लेकिन किसी के रू-ब-रू सज्दा नहीं किया अपनी बिसात से भी बढ़ा कर के ख़्वाहिशात अपने दुखों में और इज़ाफ़ा नहीं किया धोका किसी के साथ जो करना पड़ा अगर वो भी ज़रूरतों से ज़ियादा नहीं किया इक बार बारगाह-ए-इलाही में की दुआ फिर उस से दूजी बार तक़ाज़ा नहीं किया जिस से भी है फ़क़त वो उसूलों की जंग है वर्ना कभी किसी से भी झगड़ा नहीं किया रख़्त-ए-सफ़र में सब को बराबर किया शरीक तक़्सीम-ए-ज़ाद-ए-राह अनोखा नहीं किया