रुख़्सार आज धो कर शबनम ने पंखुड़ी के कुछ और बख़्श डाले अंदाज़ दिलकशी के ईसार-ए-ख़ुद-शनासी तौहीद और सदाक़त ऐ दिल सुतून हैं ये ऐवान बंदगी के रंज-ओ-अलम में कुछ कुछ आमेज़िश-ए-मसर्रत हैं नक़्श कैसे दिलकश तस्वीर-ए-ज़िंदगी के फ़र्ज़ी ख़ुदा बनाए सज्दे किए बुतों को अल्लाह-रे करिश्मे एहसास-ए-कम-तरी के क़ल्ब ओ जिगर के टुकड़े ये आँसुओं के क़तरे अल्लाह रास लाए हासिल हैं ज़िंदगी के सहराइयों से सीखे कोई रुमूज़-ए-हस्ती आबादियों में अक्सर दुश्मन हैं आगही के जान-ए-ख़ुलूस बन कर हम ऐ 'शकेब' अब तक ता'लीम कर रहे हैं आदाब ज़िंदगी के