रुत्बा कुछ आशिक़ी में न कम है फ़क़ीर का हैं जिस के सब सनम वो सनम है फ़क़ीर का तकिया इसे न भूल के कहना कभी मियाँ तकिया नहीं ये बाग़-ए-इरम है फ़क़ीर का रहता है फिर वो फूलता मिस्ल-ए-सदा सुहाग जिस गुल-बदन पे लुत्फ़-ओ-करम है फ़क़ीर का घट जाएँ जिस को देख के लाखों तिरी घटा ऐ अब्र-ए-तर वो दीदा-ए-नम है फ़क़ीर का लिखता है बिन तराशे ही हर्फ़ों के जोड़-तोड़ ऐ ख़ुश-नवीस ये वो क़लम है फ़क़ीर का ज़िल्ल-ए-हुमा भी वाँ से सआदत करे हुसूल जिस सर-ज़मीं पे नक़्श-ए-क़दम है फ़क़ीर का हैं ज़ेर-ए-साया उस के हज़ारों गदा-ओ-शाह बैरक़ इसे न कह ये अलम है फ़क़ीर का क्यूँकर लिखे न फ़क़्र के शान-ओ-शिकोह को यारो 'नज़ीर' पर भी करम है फ़क़ीर का