साँस के शोर को झंकार न समझा जाए हम को अंदर से गिरफ़्तार न समझा जाए उस को रस्ते से हटाने का ये मतलब तो नहीं किसी दीवार को दीवार न समझा जाए मैं किसी और हवाले से उसे देखता हूँ मुझ को दुनिया का तरफ़-दार न समझा जाए ये ज़मीं तो है किसी काग़ज़ी कश्ती जैसी बैठ जाता हूँ अगर बार न समझा जाए उस को आदत है घने पेड़ में सो जाने की चाँद को दीदा-ए-बेदार न समझा जाए अपनी बातों पे वो क़ाएम नहीं रहता 'ताबिश' उस के इंकार को इंकार न समझा जाए