साँस लेने के लिए ताज़ा हवा भेजी है ज़िंदगी के लिए मासूम दुआ भेजी है मैं ने भेजी थी गुलाबों की बशारत उस को तोहफ़तन उस ने भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा भेजी है मैं तो क़ातिल था बरी हो के भी क़ातिल ही रहा मुझ को इंसाफ़ ने जीने की सज़ा भेजी है कितने ग़म हैं जो सर-ए-शाम सुलग उठते हैं चारा-गर तू ने ये किस दुख की दवा भेजी है मरहले और भी थे जाँ से गुज़रने के लिए कर्बला किस ने पस-ए-कर्ब-ओ-बला भेजी है