सात जलों की रेशमी झीलें By Ghazal << ताक़ पे रखी सारी बात समुंदरों को मुहीत थी चाँद... >> सात जलों की रेशमी झीलें अमृत-रस आँखों से पी लें गाड़ गईं सूरज की साँसें अब्र के दिल में फुंकती कीलें उजड़े घरों के काले मनके नील के सायों में झपकी लें मिट्टी आग हवा और पानी खाती पीती चार दलीलें आग बहे सीने में तमामी दिल के रेशे बर्फ़ से सी लें Share on: