सात रंगों से बनी है याद ताज़ा धूप लिख लाई मुबारकबाद ताज़ा बन गई जन्नत तो हिजरत कर गए हैं नौ-ब-नौ है दश्त-ए-जाँ आबाद ताज़ा लफ़्ज़ ओ मअनी का ज़ियाँ है ख़ुद-अज़ाबी लौह-ए-दिल पर है क़लम की दाद ताज़ा आब-ए-ताज़ा ख़ंजर-ए-ख़ामोश को दे है बुरीदा लब पे फिर फ़रियाद ताज़ा फिर बहाने जाएगा लावा लहू का ख़िश्त-ए-दिल पर घर की रख बुनियाद ताज़ा बे-चराग़ाँ बस्तियों को ज़िंदगी दे इक सितम ऐसा भी कर ईजाद ताज़ा ऐसी चुप से और दिल घुटने लगा है कुछ तो हो रूह-ए-नवा इरशाद ताज़ा