साए ने साए को सदा दी रेत की हर दीवार गिरा दी इस घर में रक्खा ही क्या था मैं ने घर में आग लगा दी नींद तुम्हें आती ही कब थी याद ने किस की नींद उड़ा दी गुज़रे थे ख़ामोश गली से वो जाने अब जिस ने सदा दी एक ज़रा सी बात थी जिस की दिल ने सारी उम्र सज़ा दी मैं अपने ग़म में डूबा था तुम ने क्यूँ आवाज़ सुना दी इक साए की याद में प्यारे नाहक़ सारी उम्र गँवा दी हू के आलम में बोले हो सारी फ़ज़ा इक गूँज बना दी जब सागर अपने पर आया साहिल की हर चीज़ बहा दी इश्क़ अजब ज़िद्दी बच्चा है सर फोड़ा और ख़ाक उड़ा दी इश्क़ हमारी मिट्टी में था सूरत क्यूँ पत्थर की बना दी