सब जिसे कहते हैं वक़्फ़-ए-ग़म-ए-जानाँ होना अव्वलीं शर्त है उस के लिए इंसाँ होना ग़म के दाग़ों ने बड़ा काम बनाया दिल का इस सियह-ख़ाने में मुश्किल था चराग़ाँ होना अपने परतव के सिवा ज़ेहन में कुछ भी न रहा और सिखलाइए आईनों को हैराँ होना उफ़ ये दीवानगी-ए-इश्क़ कि इस बज़्म में भी जब कभी होश में आना तो परेशाँ होना बज़्म-ए-आलम हो कि महशर मेरी दानिस्त में है इक तजल्ली का कई रुख़ से नुमायाँ होना ख़ार-ओ-ख़स को भी निगाहों में रखें अहल-ए-चमन वर्ना मुमकिन नहीं तंज़ीम-ए-बहाराँ होना दिल के टुकड़े सर-ए-दामन पे लिए बैठा हूँ खेल समझा था इलाज-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ होना मेरा किरदार है ज़ाहिर मिरे अशआ'र से 'कैफ़' जैसे तस्वीर में इक रंग नुमायाँ होना