सब के होंटों पे ये मरने की दुआएँ कैसी चारागर तू ने हमें दी हैं दवाएँ कैसी एक ही पल में बदलते हैं मनाज़िर क्या क्या हम तिरी आँखें बनाएँ तो बनाएँ कैसी शर्म में डूबे हुए लोगों से शिकवा कैसा आप ही बुझते चराग़ों को हवाएँ कैसी मय-कशी छोड़ दो जब भूल चुके हो उस को अब शिफ़ा मिल ही गई है तो दवाएँ कैसी ऐसे हालात में हँसने की तमन्ना किस को ऐसे माहौल में जीने की दुआएँ कैसी अंधे लोगों को सुना देते हैं उस का चेहरा आप के लोग भी देते हैं सज़ाएँ कैसी हँसते गाते भी उदासी नहीं छोड़ी मैं ने छोड़ देती हैं जो बच्चों को वो माएँ कैसी