सब कुछ बस कहने को भूला जाता है वर्ना ज़ेहन से कब वो चेहरा जाता है याद बराबर आता रहता है वो शख़्स नश्शों का पैसा भी ज़ाएअ' जाता है कुछ यूँ टूट के गिरते हैं आँखों से ख़्वाब शीशा भी हैरानी में आ जाता है उस हँसती तस्वीर को आख़िर क्या मा'लूम उस को देख के कितना रोया जाता है इस दर्जा ख़ामोश रहा हूँ मुद्दत से याद नहीं है कैसे बोला जाता है मुझ को इश्क़ और दुनिया दोनों देखने हैं सानी खींच भी लूँ तो ऊला जाता है