सब कुछ है अयाँ फिर भी है पर्दा मेरे आगे दुनिया है तिरी एक करिश्मा मिरे आगे मैं प्यास की शिद्दत का फ़लक चूम रही हूँ घिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया मिरे आगे मैं ख़ुद को लकीरों में कहीं ढूँड ही लेती मुट्ठी वो कभी खोल तो देता मेरे आगे जिस सम्त भी देखूँ हैं सराबों की सलीबें फैला है अजब रेत का सहरा मेरे आगे तन्क़ीद मिरी उन के गुनाहों पे नहीं थी आईना-ए-आमाल रखा था मिरे आगे ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा पाई है 'नुसरत' इंसाफ़ हुआ शहर में रुस्वा मेरे आगे