सब कुछ मिरी क़िस्मत का तेरे दर के क़रीं है जीना भी यहीं है मुझे मरना भी यहीं है आलम से निराला है तेरे हुस्न का आलम तू ख़ुद भी हसीं तेरी मोहब्बत भी हसीं है वाइज़ की ज़बाँ और ये जन्नत के फ़साने कम्बख़्त ने मय-ख़ाना तो देखा ही नहीं है 'नश्तर' को गुनाहों की जज़ा मिल के रहेगी उस को तिरी रहमत पे भरोसा है यक़ीं है