सब से जुदा और सब से अलग मेरी तेरी आवाज़ तू पुर-शोर समुंदर में सूखी जलती आवाज़ कोई भूला भटका बादल कह बैठे लब्बैक आख़िर कब तक ख़ाली जाए मिट्टी की आवाज़ आधे रस्ते ही में सूरज कर देता है ख़ाक जब भी कभी आकाश को देती है धरती आवाज़ ज़ेहनों में जब सन्नाटों का बरपा हो कोहराम फिर कैसे सुन पाए कोई कान पड़ी आवाज़ दिल के मंज़र-गाह में 'रहमानी' ख़्वाहिश बे-रंग गुम्बद सी क़िस्मत में जूँ गूँगी बहरी आवाज़