सच बोलना चाहें भी तो बोला नहीं जाता झूटों के लिए शहर भी छोड़ा नहीं जाता तुम कितना ही ओहदों से नवाज़ों हमें लेकिन नफ़रत का शजर हम से तो बोया नहीं जाता सोचो तो जवानी कभी वापस नहीं आती देखो तो कभी आ के बुढ़ापा नहीं जाता दिल पर तो बहुत ज़ख़्म ज़माने के लगे हैं ख़ुद-दारी से लेकिन कभी रोया नहीं जाता दुनिया भी सुकूँ से कभी रहने नहीं देती नौहा भी कभी अपनों का लिक्खा नहीं जाता पहरे मिरे होंटों पे लगा रक्खे हैं उस ने चाहूँ मैं गिला करना तो बोला नहीं जाता तिनके भी नहीं छोड़े हैं 'नय्यर' किसी घर के सैलाब वो आया है कि देखा नहीं जाता