सच ज़बानों पर हो तो शानों पे सर रहते नहीं पत्थरों के शहर में शीशे के घर रहते नहीं छोड़ कर मुझ को चला है तो पता होगा उसे रेग-ज़ारों में कभी नाज़ुक शजर रहते नहीं चंद लम्हों के लिए मिलना है बस उन का नसीब देर तक शब और सूरज हम-सफ़र रहते नहीं कोई कितना भी हो प्यारा हो ही जाता है जुदा ज़ख़्म जितने भी हों गहरे उम्र भर रहते नहीं उस की आँधी की तरह फ़ितरत बड़ी पुर-जोश थी ऐसे मौसम में दिए हों या शरर रहते नहीं या तो हो जाओ मिरे या छोड़ दो मेरा ख़याल दरमियाने से मरासिम मो'तबर रहते नहीं तोड़ लेना शाख़ से ख़ुद उन को बेहतर है 'नईम' देर तक पक कर दरख़्तों पर समर रहते नहीं