सच के चेहरे पर उजाला झूट का दौर है कैसा निराला झूट का महफ़िलें आरास्ता हैं झूट की हो रहा है बोल-बाला झूट का हज़्म होता ही नहीं उस को कभी जो भी खाता है निवाला झूट का हो गई तशहीर कितनी झूट की शान से निकला रिसाला झूट का जिस से भी माँगो कभी सच की दलील वो ही देता है हवाला झूट का 'फ़ैज़' सच की हम करेंगे रहबरी हम निकालेंगे दीवाला झूट का