सदा वो देता भी होगा तो क्या ख़बर मुझ को जो सुनने दे ये मशीनों का शोर-ओ-शर मुझ को अजीब दश्त हूँ मैं भी कि एक इक ज़र्रा उड़ाए फिरता है मुद्दत से दर-ब-दर मुझ को हर इक से पूछता फिरता है मेरा नाम-ओ-निशाँ गुज़र गया था कभी सहल जान कर मुझ को हवा वो दूर से देता है अपने दामन को क़रीब आता नहीं जान कर शरर मुझ को मैं अपने क़त्ल का इल्ज़ाम किसी को दूँ 'राही' मिला है अपना ही दामन लहू में तर मुझ को