सदफ़ के कर्ब को वो मानता है इक इक मोती की क़ीमत जानता है नफ़ासत से बनाता है खिलौने पसीने से जो मिट्टी सानता है कहीं जाऊँ वो मुझ को ढूँड लेगा मुझे मेरा अमल पहचानता है मयस्सर है हवा-ए-दश्त उस को रिदा-ए-गर्द से जो छानता है जो रहता है अज़ल की जुस्तुजू में वो दुनिया में किसे गर्दानता है मिरे क़दमों से वाबस्ता मसाफ़त मुझे हर रास्ता पहचानता है मुबारक तुझ को तेरी बे-ज़मीरी मुझे इस जुर्म में क्यूँ सानता है कसाफ़त से है तौक़ीर-ए-लताफ़त अंधेरा रौशनी को छानता है जिसे है याद क़ौमों की कहानी हवा के रुख़ को वो पहचानता है अज़ल से 'रम्ज़' ये ज़ेब-ए-नज़र है कहीं सलमा कहीं वो कान्ता है