सड़कों पर सूरज उतरा साया साया टूट गया जब गुल का सीना चीरा ख़ुश्बू का काँटा निकला तू किस के कमरे में थी मैं तेरे कमरे में था खिड़की ने आँखें खोली दरवाज़े का दिल धड़का दिल की अंधी ख़ंदक़ में ख़्वाहिश का तारा टूटा जिस्म के काले जंगल में लज़्ज़त का चीता लपका फिर बालों में रात हुई फिर हाथों में चाँद खिला