सदमा हर-चंद तिरे जौर से जाँ पर आया तिस पे शिकवा न कभी मेरी ज़बाँ पर आया रास्त-केशों की तुफ़-ए-आह से डर ऐ सरकश तीर फिरता नहीं जिस वक़्त निशाँ पर आया मौसम-ए-शेब में बे-फ़ाएदा है लअब-ए-शबाब कब समर देवे है जो नख़्ल ख़िज़ाँ पर आया दिल-ए-पुर-ख़ूँ को मिरे ग़ुंचा-ए-तस्वीर की तरह लब-ए-वाशुद न कभी राज़-ए-निहाँ पर आया चश्म-ए-अंजुम पे नहीं अब्र से वो रोज़-ए-सियाह जो मिरे दीदा-ए-ख़ूँ-नाब-चकाँ पर आया रात को देख के ऐ माह तुझे ग़ैर के साथ त'अना-ज़न दिल का मिरे गुल के कताँ पर आया हो के उस्ताद दबिस्तान-ए-सुख़न में 'सौदा' शेर के क़ाएदा दानान-ए-जहाँ पर आया