सफ़र बदलता रहा हम-सफ़र बदलते रहे ज़रूरतों के मुताबिक़ बशर बदलते रहे जहाँ सुकून मिला बैठ जाते थे हम लोग परिंद की तरह हम भी शजर बदलते रहे ज़ईफ़ बाप की ख़िदमत की बात जब आई तो मौसमों की तरह से पिसर बदलते रहे वो मंज़िलों पे कभी भी पहुँच नहीं पाए ज़रा सी देर में जो राहबर बदलते रहे दुआएँ करते रहे हम भी दुश्मनों के लिए पर अपने वास्ते हम भी सिपर बदलते रहे ये कह रहा है सर-ए-दश्त-ए-नैनवा ख़ंजर मैं थक गया था मगर फिर भी सर बदलते रहे 'तुराब' तुम भी तो बदले हो कितनी तेज़ी से न चाहते हुए तुम भी मगर बदलते रहे