सफ़र है ज़ेहन का तो कोई रहनुमा ले जा मिरा सुकूत न हो तो मरी सदा ले जा हर एक सम्त है दश्त-ए-सुकूत की वुसअत बचा के ये रविश-ए-अर्ज़-ए-मुद्दआ ले जा मैं ज़ेर-ए-संग इसी तीरगी में जी लूँगा तू अपनी नर्म शुआओं का क़ाफ़िला ले जा कुछ और चाट ले सहरा-ए-गुमरही का नमक जो आ गया है तू राहों का ज़ाइक़ा ले जा बिखर के छूट न जाऊँ तिरी गिरफ़्त से मैं सँभाल कर मुझे ऐ मौज-ए-ख़ुश-अदा ले जा