सफ़र का और कोई सिलसिला निकालेंगे भटक गए तो नया रास्ता निकालेंगे क़रीब आने लगेगी जो वस्ल की मंज़िल हम अपने बीच कोई फ़ासला निकालेंगे समेट कर किसी कोने में गठड़ियाँ ग़म की नई ख़ुशी के लिए हम जगह निकालेंगे बनेंगे इश्क़-ए-अदालत में हम वकील तिरे पुरानी बात में नुक्ता नया निकालेंगे रहे जो उम्र की पूजा के बा'द भी पत्थर दिलों से हम वो सभी देवता निकालेंगे तिरी जफ़ा में मिला कर सितम ज़माने के शराब-ए-ग़म का अजब ज़ाइक़ा निकालेंगे हमें ख़मोश किया जाएगा सदा के लिए अगर ज़बान से कोई सदा निकालेंगे भरेगी नींद जो इन बे-क़रार आँखों से हम एक उम्र का ये रत-जगा निकालेंगे