सफ़र में तीरा-शबी के अज़ाब इतने हैं इसी लिए तो परेशान ख़्वाब इतने हैं जिधर भी देखिए दश्त-ए-तहय्युरात सा है जिधर भी जाइए अब इंक़लाब इतने हैं तुम्हारे साथ चलें हम ने बारहा सोचा हमारी जान को लेकिन अज़ाब इतने हैं क़दम क़दम पे है इम्काँ फ़रेब का यारो नज़र नज़र में यहाँ तो सराब इतने हैं अभी है दूर हर इक महफ़िल-ए-तरब से 'सुख़न' दिल-ओ-नज़र में अभी इज़्तिराब इतने हैं