सफ़र से आए तो फिर इक सफ़र नसीब हुआ कि उम्र-भर के लिए किस को घर नसीब हुआ वो एक चेहरा जो बरसों रहा है आँखों में कब उस को देखना भी आँख-भर नसीब हुआ तमाम-उम्र गुज़ारी उसी के काँधे पर जो एक लम्हा हमें मुख़्तसर नसीब हुआ हवा में हिलते हुए हाथ और नम आँखें हमें बस इतना ही ज़ाद-ए-सफ़र नसीब हुआ हुआ के रुख़ से पुर-उम्मीद था बहुत गुलशन पर अब के भी शजर बे-समर नसीब हुआ बुलंदियों की हवस में जो सब को छोड़ गए कब उन परिंदों को अपना शजर नसीब हुआ लबों से निकलीं इधर और उधर क़ुबूल हुईं कहाँ दुआओं में ऐसा असर नसीब हुआ इधर छुपाएँ तो खिल जाएँ दूसरी जानिब लिबास-ए-ज़ीस्त ज़रा मुख़्तसर नसीब हुआ 'सलीम' चारों-तरफ़ तीरगी के जाल घने प हम को नेश्तर-ए-बे-ज़रर नसीब हुआ