सफ़ेद रात को दिन की धड़क समझते हैं चराग़ जैसे हवा की लपक समझते हैं दिखा रहे हैं वही जो पसंद है मुझ को कि आइने मिरे दिल की कसक समझते हैं ये बर्तनों से छलकती हुई उदासी है जिसे हम एक बदन की खनक समझते हैं लबों के ज़हर को चखने की क्या ज़रूरत है फ़क़ीर आँख में फैली चमक समझते हैं तुम्हारे बाद समझने लगे हैं सब 'इरशाद' ख़ुशी के ज़ाइक़े ग़म की महक समझते हैं