सफ़्फ़ाक सराब से ज़ियादा है इश्क़ अज़ाब से ज़ियादा मक़्तूल के चेहरे पर चमक थी तलवार की आब से ज़ियादा मैं अहल-ए-किताब को हमेशा पढ़ता हूँ किताब से ज़ियादा क्या रंग दिखाए हम जो चाहें काँटे को गुलाब से ज़ियादा उतरा वो रगों में ज़हर जिस में नश्शा है शराब से ज़ियादा मानूस हैं ग़म 'कमाल' शायद मुझ ख़ाना-ख़राब से ज़ियादा