सफ़ीरान-ए-मोहब्बत प्यार की राहों में पलते हैं सभी ऐश-ओ-तरब मेरे तिरी बाहों में पलते हैं शिकस्ता-दिल का मैं अपने कभी क़िस्सा न छेड़ूँगी सितम तो इश्क़ वालों की पनह-गाहों में पलते हैं मुबारक शहर वालों को मुज़य्यन शहर की रौनक़ हमारा क्या क़लंदर हैं गुज़रगाहों में पलते हैं अमीर-ए-शहर मत उलझो मोहब्बत के फ़क़ीरों से ये बंदे रब की रहमत की सदा छाँव में पलते हैं अभी तक खुल नहीं पाया इरादा यार का क्या है मगर हम कह नहीं सकते कि हम छाँव में पलते हैं ज़माना साथ कब देता है रंज-ओ-ग़म के मौसम में दिल-ए-मुज़्तर के सब अरमान बस आहों में पलते हैं ख़ुशी का राज़ दौलत में निहाँ होता नहीं 'उश्बा' गुल-ए-शादाब ख़ारों की पनह-गाहों में पलते हैं