साग़र-ब-दस्त हूँ मैं मस्त-ए-अलस्त हूँ मैं जो कुछ न है न थी कुछ वो बूद-ओ-हस्त हूँ मैं दिल है बुलंद बातिन ज़ाहिर में पस्त हूँ मैं कसरत से क्या तअल्लुक़ वहदत परस्त हूँ मैं कह दो बहार आए दामन ब-दस्त हूँ मैं साक़ी को भूल बैठा इस दर्जा मस्त हूँ मैं क्यूँ कर कोई भुलाए अहद-ए-अलस्त हूँ मैं ग़म भी ख़ुशी में शामिल फ़तह-ओ-शिकस्त हूँ मैं कहते हों 'नूह' मुझ को तूफ़ाँ परस्त हूँ मैं