सहन-ए-चमन है गोशा-ए-ज़िंदाँ तिरे बग़ैर मा'मूरा-ए-हयात है वीराँ तिरे बग़ैर छुप छुप के जिस को देखने आता था माहताब ज़ुल्मत-कदा है अब वो शबिस्ताँ तिरे बग़ैर जलता है चारासाज़ की नादानियों पे जी मैं और मेरे दर्द का दरमाँ तिरे बग़ैर सोती हैं इस में कितनी उमीदें फ़ना की नींद सीना है एक शहर-ए-ख़मोशाँ तिरे बग़ैर मेरी हँसी कि थी तिरा सरमाया-ए-नशात आ देख अब है ख़ंदा-ए-गिर्यां तिरे बग़ैर महताब के हुजूम में गुम हो गई थी रात फिर क़हर बन गया ग़म-ए-दौराँ तिरे बग़ैर जलता है तेज़ तेज़ तड़पता है पै-ब-पै दिल है कि एक शोला-ए-लरज़ाँ तिरे बग़ैर मैं हेच हूँ मगर मुझे इतना सुबुक न कर मैं और नशात-ए-ज़ीस्त का अरमाँ तिरे बग़ैर जिस ज़िंदगी को तू ने बनाया था ज़िंदगी वो ज़िंदगी है ख़्वाब-ए-परेशाँ तिरे बग़ैर