सहर जब बिस्तर-ए-राहत से वो रश्क-ए-क़मर उट्ठा ग़ुलामी उस की में ख़ुर्शीद ले तेग़-ओ-सिपर उट्ठा अभी तस्कीं हुई थी इक ज़रा फ़रियाद-ओ-ज़ारी से लगा दिल मुज़्तरिब होने कि फिर दर्द-ए-जिगर उट्ठा गले पर मेरे ख़ंजर फेरता वो और भी लेकिन हुई मुझ से ख़ता इतनी कि मैं फ़रियाद कर उट्ठा नहीं मा'लूम ऐ यारो 'सबा' के दिल में क्या आया अभी जो बैठे बैठे वो यकायक आह कर उट्ठा